Journal of Advances in Developmental Research

E-ISSN: 0976-4844     Impact Factor: 9.71

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जोधपुर नगर में शैक्षणिक संस्थाओं का विकास (1947-2020 ई. के विशेष संदर्भ में)

Author(s) माया कँवर, डॉ. भगवान सिंह शेखावत
Country India
Abstract भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् देश के समग्र विकास के साथ-साथ शिक्षा क्षेत्र में भी व्यापक परिवर्तन और विकास की प्रक्रिया आरंभ हुई। शिक्षा को सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक उन्नयन का मूल स्तंभ माना गया। एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत ने शिक्षा को लोकतांत्रिक अधिकार के रूप में मान्यता दी और संविधान में इसके लिए ठोस प्रावधान किए। न केवल साक्षरता दर बढ़ाने की दिशा में प्रयास किए गए, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता, समावेशिता, और बहुआयामी स्वरूप पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। राजस्थान का जोधपुर नगर, अपनी ऐतिहासिक विरासत, स्थापत्य कला एवं सांस्कृतिक महत्त्व के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान देता रहा है। यह नगर प्राचीन काल से ही ज्ञान और विद्या का केन्द्र रहा है, जहाँ राजाओं द्वारा संस्कृत शिक्षा, फारसी पाठशालाओं एवं परंपरागत मदरसों को संरक्षण दिया जाता था। रियासत काल में महाराजा जसवंत सिंह एवं उम्मेद सिंह जैसे शासकों ने शिक्षा को समाजोत्थान का प्रमुख माध्यम माना और कई संस्थाओं की नींव रखी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् यह परंपरा और अधिक प्रगतिशील रूप में आगे बढ़ी। स्वतंत्र भारत में जोधपुर ने जिस प्रकार शैक्षणिक उन्नति की दिशा में अपने कदम बढ़ाए, वह न केवल क्षेत्रीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अनुकरणीय है। यहाँ शिक्षा के क्षेत्र में प्राथमिक से लेकर उच्च एवं तकनीकी शिक्षा तक की समुचित व्यवस्था विकसित हुई है। जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय की स्थापना ने उच्च शिक्षा को नई दिशा दी, वहीं राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं जैसे आईआईटी, एम्स, एनआईएफटी की उपस्थिति ने इसे एक बहुआयामी शिक्षण केन्द्र में रूपांतरित कर दिया।
इस शोध-पत्र के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 1947 से लेकर 2020 ई. तक के कालखण्ड में जोधपुर नगर में शैक्षणिक संस्थाओं के विकास की प्रक्रिया का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। यह अध्ययन इस दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है कि यह जोधपुर की शैक्षणिक यात्रा को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए उसकी वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं को भी रेखांकित करता है।
शोध का उद्देश्य केवल संस्थाओं की स्थापना एवं उनके भौतिक विकास का वर्णन करना नहीं है, बल्कि यह समझना भी है कि इन संस्थाओं ने समाज के विभिन्न वर्गों पर क्या प्रभाव डाला, किस प्रकार उन्होंने सामाजिक चेतना, रोजगार, महिला सशक्तिकरण और तकनीकी नवाचार में भूमिका निभाई, और किस हद तक वे सामाजिक विषमताओं को समाप्त करने में सफल हुईं।
यह अध्ययन यह भी दर्शाता है कि शिक्षा केवल पाठ्यक्रम और परीक्षा तक सीमित न रहकर समाज के व्यापक परिवर्तन का वाहक बन सकती है। शिक्षा की पहुँच, गुणवत्ता, समानता और नवाचार की दिशा में जोधपुर नगर ने किस प्रकार अपने ऐतिहासिक गौरव को आधुनिक युग की आवश्यकताओं से जोड़ा है, यह शोध-पत्र उन्हीं पहलुओं का समग्र मूल्यांकन प्रस्तुत करता है।

1947 के बाद का शैक्षणिक परिदृश्य
उच्च शिक्षा संस्थानों का विकास
• जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय (JNVU) – स्थापना: 1962
o यह जोधपुर में उच्च शिक्षा का मुख्य केंद्र बना।
o कला, विज्ञान, वाणिज्य, विधि, इंजीनियरिंग जैसे विविध विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों की शुरुआत हुई।
o यह विश्वविद्यालय 1948 में गठित 'जसवंत कॉलेज' के उन्नयन के रूप में विकसित हुआ।
• AIIMS जोधपुर – स्थापना: 2012
o भारत सरकार द्वारा स्थापित इस प्रमुख चिकित्सा संस्थान ने जोधपुर को मेडिकल एजुकेशन के क्षेत्र में राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
o चिकित्सा अनुसंधान, स्नातक चिकित्सा शिक्षा और सुपर-स्पेशलिटी सेवाओं में यह संस्था अग्रणी है।
• IIT जोधपुर – स्थापना: 2008
o यह संस्थान विज्ञान, तकनीकी और नवाचार के क्षेत्र में जोधपुर को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिला रहा है।
o यहाँ कंप्यूटर साइंस, इंजीनियरिंग, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे आधुनिक विषयों में अनुसंधान कार्य हो रहा है।
3.2. महिला शिक्षा संस्थाओं का विकास
• कन्या महाविद्यालय (K.N. College) – स्थापना: 1962
o यह जोधपुर की सबसे प्रमुख महिला कॉलेजों में से एक है।
o इसकी स्थापना का उद्देश्य महिला शिक्षा को बढ़ावा देना था।

• कनोडिया बालिका विद्यालय और राजमाता स्कूल
o जोधपुर में महिला शिक्षा के प्रारंभिक स्तंभ बने।
3.3. विद्यालय शिक्षा का विस्तार
• डेल्ही पब्लिक स्कूल (DPS जोधपुर) – स्थापना: 1998
o निजी क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण विद्यालय शिक्षा की दिशा में अग्रणी।
• राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चौपासनी (स्थापना: 1950 दशक)
o शासकीय विद्यालयों में उच्च शिक्षा की नींव रखने वाला संस्थान।
• श्री गांधी बाल निकेतन, सरस्वती विद्या मंदिर, केंद्रीय विद्यालय आदि
o इन विद्यालयों ने शहर के विभिन्न वर्गों के बच्चों को समावेशी शिक्षा प्रदान की।

स्वतंत्रता पूर्व की स्थिति
1947 से पूर्व जोधपुर नगर शिक्षा के क्षेत्र में सीमित संसाधनों और शासकीय प्रयासों के अंतर्गत कार्य कर रहा था। यह कालखंड तत्कालीन जोधपुर रियासत के अधीन था, जहाँ शिक्षा का विकास राजसी संरक्षण और पारंपरिक संरचनाओं के अंतर्गत होता था। यद्यपि शिक्षा को समाज में मान्यता प्राप्त थी, परंतु उसका स्वरूप सीमित और विशिष्ट वर्ग तक ही केंद्रित था। जन-सामान्य विशेषकर निम्न वर्ग, ग्रामीण क्षेत्र और महिलाओं को शिक्षा से लगभग वंचित ही रखा गया था। जोधपुर रियासत के महाराजा उम्मेद सिंह शिक्षा के महत्त्व को समझते थे और उन्होंने शिक्षा को सामाजिक विकास का प्रमुख माध्यम मानते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना करवाई। इन प्रयासों में सबसे प्रमुख था जसबंत कॉलेज, जिसकी स्थापना 1893 ई. में महाराजा सर जसवंत सिंह द्वितीय के नाम पर की गई थी। यह कॉलेज उस समय के पश्चिमी राजस्थान का प्रमुख उच्च शिक्षा केंद्र बना और यहाँ से कई शिक्षाविद, प्रशासक एवं समाजसेवी निकले। इसके अतिरिक्त स्कूल स्तर पर भी कुछ शिक्षण संस्थाएँ, जैसे सरस्वती पाठशालाएँ, मदरसे, एवं संस्कृत पाठशालाएँ कार्यरत थीं, जो धार्मिक और पारंपरिक विषयों तक सीमित शिक्षा प्रदान करती थीं। स्वतंत्रता पूर्व शिक्षा व्यवस्था में एक विशेष प्रवृत्ति यह थी कि अधिकांश शिक्षा संस्थान शहरी क्षेत्रों तक सीमित थे। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का अभाव था, और जहाँ स्कूल थे भी, वहाँ शिक्षकों की भारी कमी, अधोसंरचना की कमजोरी, और पाठ्यपुस्तकों की अनुपलब्धता जैसी समस्याएँ बनी रहती थीं।
सामाजिक दृष्टि से शिक्षा की पहुँच केवल उच्च जातियों, संपन्न वर्गों और पुरुषों तक सीमित थी। निम्न जातियों और महिलाओं के लिए शिक्षा सुलभ नहीं थी। बालिका शिक्षा की स्थिति विशेष रूप से दयनीय थी। यदि कहीं बालिकाओं के लिए विद्यालय थे भी, तो उनमें दाखिले की दर बहुत कम थी और सामाजिक बंधनों एवं रूढ़ियों के कारण उनका अध्ययन लंबे समय तक नहीं चल पाता था। इसके साथ ही उस समय की शिक्षा प्रणाली में आधुनिक विज्ञान, गणित, नागरिक शास्त्र आदि विषयों पर कम ध्यान दिया जाता था। पाठ्यक्रम में धर्म, नैतिकता, संस्कृत साहित्य और फारसी जैसी परंपरागत विषयवस्तु का बोलबाला था। अंग्रेजों के आगमन के बाद जहाँ एक ओर कुछ अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल स्थापित किए गए, वहीं दूसरी ओर परंपरागत पाठशालाएँ भी अपनी सीमाओं में कार्यरत रहीं। हालाँकि, शिक्षा के क्षेत्र में जोधपुर रियासत ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद उल्लेखनीय कार्य किए। महाराजा उम्मेद सिंह द्वारा प्रौद्योगिकी, विज्ञान और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में भविष्य की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संस्थागत संरचनाओं की नींव रखी गई। इसके उदाहरण के रूप में सांइस स्कूल, जोधपुर मेडिकल स्कूल, तथा तकनीकी शिक्षा केंद्र सामने आए, जो आगे चलकर आधुनिक संस्थाओं का आधार बने।
इस प्रकार, स्वतंत्रता पूर्व जोधपुर नगर में शिक्षा की स्थिति मिश्रित थी। एक ओर जहाँ जागरूक शासकों द्वारा कुछ उल्लेखनीय प्रयास किए गए, वहीं दूसरी ओर सामाजिक असमानता, लिंग भेद, और सीमित संसाधनों के कारण शिक्षा का पूर्ण और समावेशी विकास संभव नहीं हो पाया। यह स्थिति स्वतंत्रता के बाद बदलाव की ओर प्रेरक बनी और नवनिर्माण की दिशा में शिक्षा को केंद्र में रखते हुए योजनाबद्ध विकास आरंभ हुआ।

स्वतंत्रता उपरांत शिक्षा नीति और जोधपुर
1947 में भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् देश के समग्र विकास के लिए शिक्षा को एक प्रमुख आधार माना गया। यह समझा गया कि यदि देश को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाना है, तो उसके नागरिकों को शिक्षित करना अनिवार्य है। इस संदर्भ में केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा के सार्वभौमिकरण, गुणवत्ता सुधार, सामाजिक समावेशन और साक्षरता अभियान जैसे विभिन्न पहलुओं पर नीति निर्धारण आरंभ किया गया। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 में यह निर्देश दिया गया कि 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जाए। यह एक दूरगामी दृष्टिकोण था, जिसने सम्पूर्ण भारत में शिक्षा की एक नई लहर को जन्म दिया। इसी के अनुरूप जोधपुर नगर में भी शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय प्रयास प्रारंभ हुए।
1950 के दशक से लेकर 1970 तक का कालखंड जोधपुर में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की आधारशिला को सुदृढ़ करने का काल रहा। इस अवधि में नगर में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, राजकीय बालिका विद्यालय, और राजकीय संस्कृत विद्यालय जैसे संस्थानों की स्थापना हुई। शिक्षा को केवल बालकों तक सीमित न रखकर, बालिकाओं के लिए भी पृथक विद्यालय खोले गए। यह उस समय के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने धीरे-धीरे महिला शिक्षा की राह प्रशस्त की। इसी काल में राज्य सरकार द्वारा शैक्षणिक अधोसंरचना को विकसित करने हेतु भवन निर्माण, पुस्तक वितरण, छात्रवृत्ति योजनाओं और मध्याह्न भोजन जैसी योजनाओं की भी शुरुआत हुई, जिसका प्रभाव जोधपुर नगर की जनसंख्या पर सीधा पड़ा। शिक्षा अब एक विशिष्ट वर्ग का विशेषाधिकार न रहकर जनसामान्य तक पहुँचने लगी। इसके साथ ही, निजी क्षेत्र की कुछ संस्थाओं ने भी इस काल में प्रवेश किया। समाजसेवियों, धार्मिक ट्रस्टों एवं शिक्षाविदों द्वारा स्थापित स्कूलों ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता को बढ़ावा दिया। निजी विद्यालयों ने अंग्रेज़ी माध्यम, आधुनिक पाठ्यक्रम, और सह-शैक्षणिक गतिविधियों को प्राथमिकता दी, जिससे नगर के मध्यवर्गीय एवं नवउदित शहरी वर्ग में शिक्षा के प्रति जागरूकता और उत्साह उत्पन्न हुआ।
1968 में प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, जिसमें समान शिक्षा प्रणाली, तीन-भाषा सूत्र, विज्ञान और गणित पर बल, और नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर विशेष ज़ोर दिया गया। इसका प्रभाव जोधपुर के विद्यालयों और शिक्षकों के प्रशिक्षण पर भी पड़ा। स्थानीय विद्यालयों ने विज्ञान प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और खेल सुविधाओं के विकास की दिशा में कार्य करना आरंभ किया। इसके अतिरिक्त जोधपुर में इस काल में शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों की भी स्थापना हुई, जिससे शिक्षकों की गुणवत्ता और पेशेवर दक्षता में सुधार आया। ये संस्थान आने वाले वर्षों में जोधपुर नगर के शिक्षा तंत्र की रीढ़ सिद्ध हुए।
अतः यह स्पष्ट है कि स्वतंत्रता के पश्चात् लागू की गई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय शिक्षा नीतियों ने जोधपुर नगर में शिक्षा के स्वरूप को व्यापक रूप से प्रभावित किया। जहाँ पहले शिक्षा कुछ वर्गों तक सीमित थी, वहीं अब यह एक व्यापक सामाजिक अधिकार बन चुकी थी। शिक्षण संस्थानों की संख्या, पहुंच, गुणवत्ता और समावेशिता – इन सभी क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई।

उच्च शिक्षा में विस्तार
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् जोधपुर नगर में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रगति देखी गई, किंतु 1960 के दशक में यह प्रगति एक संगठित एवं संस्थागत स्वरूप में सामने आई। वर्ष 1962 में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय (JNVU) की स्थापना इस दिशा में एक ऐतिहासिक पहल थी। यह विश्वविद्यालय न केवल जोधपुर नगर बल्कि समूचे पश्चिमी राजस्थान के लिए उच्च शिक्षा का प्रमुख केन्द्र बन गया। विश्वविद्यालय में विज्ञान, कला, वाणिज्य, विधि और प्रौद्योगिकी जैसे विविध विषयों में शिक्षा प्रदान की जाने लगी, जिससे युवाओं के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने के द्वार खुल गए।
1980 और 1990 के दशकों में विश्वविद्यालय से सम्बद्ध अनेक महाविद्यालयों की स्थापना हुई, जिनमें कमला नेहरू महिला महाविद्यालय, लाचू मेमोरियल कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, और अन्य स्वायत्त संस्थान सम्मिलित हैं। इन कॉलेजों ने जोधपुर के शैक्षिक परिदृश्य को बहुआयामी बना दिया। यहाँ अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को न केवल पारंपरिक शिक्षा बल्कि नवाचार, अनुसंधान और सामाजिक विकास से भी जोड़ा गया। विशेष रूप से महिला महाविद्यालयों की भूमिका महिला सशक्तिकरण में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही।
तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा का विकास
1991 के पश्चात् भारत में लागू की गई आर्थिक उदारीकरण की नीतियों ने तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा को नयी दिशा प्रदान की। वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण के प्रभावस्वरूप उद्योग जगत की आवश्यकताओं के अनुसार कुशल मानव संसाधन की माँग में वृद्धि हुई। जोधपुर में इस काल में कई अत्याधुनिक तकनीकी एवं व्यावसायिक संस्थानों की स्थापना की गई।
2008 में स्थापित IIT जोधपुर (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तकनीकी शिक्षा की प्रतिष्ठा को जोधपुर में सुदृढ़ किया। यह संस्थान उन्नत अनुसंधान, नवाचार, और उद्यमिता को बढ़ावा देने वाला प्रमुख केन्द्र बना।
इसी क्रम में, राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान (NIFT) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), जोधपुर की स्थापना हुई, जिसने जोधपुर को फैशन डिज़ाइन और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया। इसके अतिरिक्त, MBM इंजीनियरिंग कॉलेज, जो प्रारंभ में JNVU से सम्बद्ध था, अब स्वतंत्र तकनीकी विश्वविद्यालय के रूप में कार्य कर रहा है। साथ ही अरावली इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जैसे कई निजी संस्थानों ने व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा को और अधिक व्यावहारिक, सुलभ और विविधतापूर्ण बनाया।
विद्यालय शिक्षा का समावेशी विकास
1990 के दशक से लेकर 2020 तक की अवधि में विद्यालयी शिक्षा में एक व्यापक परिवर्तन देखा गया। सरकार और निजी क्षेत्र दोनों की सहभागिता से जोधपुर में शिक्षा की पहुँच, गुणवत्ता और नवाचार में उल्लेखनीय विकास हुआ। निजी विद्यालयों की बढ़ती संख्या ने शिक्षा में प्रतिस्पर्धा एवं गुणात्मक सुधार को बढ़ावा दिया। डेल्ही पब्लिक स्कूल, सेंट पॉल्स, एम.जी. पब्लिक स्कूल, विद्या भारती, सोपान आदि विद्यालयों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पाठ्यक्रमों के माध्यम से जोधपुर के छात्रों को वैश्विक शिक्षा प्रणाली से जोड़ा। इनमें स्मार्ट क्लास, बहुभाषीय शिक्षा, प्रोजेक्ट आधारित शिक्षण, और डिजिटल लर्निंग जैसी आधुनिक पद्धतियों का समावेश किया गया। सरकारी विद्यालयों में भी संसाधनों का विस्तार हुआ। राजस्थान सरकार की 'शाला दर्पण योजना', 'मुख्यमंत्री डिजिटल शिक्षा योजना', और समग्र शिक्षा अभियान जैसे कार्यक्रमों ने विद्यालय स्तर पर शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार किया। स्मार्ट कक्षाएं, पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशालाएँ और शिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने राजकीय विद्यालयों को प्रतिस्पर्धात्मक ब बनाया।
महिला शिक्षा का उन्नयन
स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा महिला शिक्षा को एक सामाजिक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में देखा गया। जोधपुर नगर में भी इस दिशा में कई महत्त्वपूर्ण पहलें की गईं। कमला नेहरू महिला महाविद्यालय और श्रीमती बी.एल. महेश्वरी महिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान जैसे संस्थानों की स्थापना ने महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के द्वार खोले। इसके अतिरिक्त, महिला विद्यालयों की स्थापना, कन्या शिक्षा प्रोत्साहन योजनाएँ, छात्रवृत्तियाँ, और स्वस्थ शैक्षणिक वातावरण ने अभिभावकों की सोच में परिवर्तन लाया। आज जोधपुर नगर की बालिकाएँ न केवल विद्यालयों में शिक्षित हो रही हैं, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं, विज्ञान, तकनीकी, खेलकूद और कला जैसे विविध क्षेत्रों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं।
शिक्षा और समाज का संबंध
जोधपुर नगर में शैक्षणिक संस्थाओं के विकास का प्रभाव सामाजिक संरचना पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ा है। शिक्षा ने न केवल साक्षरता बढ़ाई, बल्कि जाति, वर्ग, और लिंग के आधार पर बनी असमानताओं को भी चुनौती दी। महिला शिक्षा के प्रसार ने सामाजिक गतिशीलता को बल प्रदान किया, वहीं तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा ने युवाओं को स्वरोजगार और आधुनिक रोजगारों के लिए तैयार किया।
शिक्षा ने नागरिकों में संवैधानिक मूल्यों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, एवं सामाजिक चेतना का विकास किया। इसका परिणाम यह हुआ कि जोधपुर न केवल एक ऐतिहासिक नगर रहा, बल्कि एक शैक्षणिक केन्द्र के रूप में भी पहचाना जाने लगा, जहाँ राजस्थान के सीमावर्ती जिलों, और यहां तक कि हरियाणा, गुजरात और मध्य प्रदेश से भी छात्र अध्ययन हेतु आने लगे।

2020 तक की उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ
वर्ष 2020 तक जोधपुर नगर की शैक्षणिक परिदृश्य ने एक परिपक्व रूप ले लिया था। स्वतंत्रता के पश्चात आरंभ हुए शिक्षा के क्रमिक विकास ने इस समय तक एक ऐसा आधारभूत ढाँचा तैयार कर दिया था, जिसमें प्राथमिक से लेकर उच्च तकनीकी एवं अनुसंधान आधारित शिक्षा तक की सुविधाएं सुलभ हो चुकी थीं।
राज्य और केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं – जैसे ‘राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA)’, ‘समग्र शिक्षा अभियान’, और ‘डिजिटल इंडिया’ के तहत स्मार्ट क्लासरूम, डिजिटल कंटेंट, शिक्षक प्रशिक्षण, एवं ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म जैसे तत्वों का समावेश विद्यालयों और महाविद्यालयों में हो चुका था। निजी क्षेत्र की भागीदारी से शिक्षा का क्षेत्र और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक तथा प्रगतिशील बना। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में IIT, AIIMS, NLU (नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी) जैसे राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों की उपस्थिति ने जोधपुर को शैक्षणिक मानचित्र पर एक उभरते हुए केन्द्र के रूप में प्रतिष्ठित किया। रिसर्च और इनोवेशन की संस्कृति ने भी धीरे-धीरे संस्थानों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जिससे स्थानीय समस्याओं पर आधारित अनुसंधान को बल मिला।
हालाँकि, इन उपलब्धियों के साथ-साथ कुछ प्रमुख चुनौतियाँ भी विद्यमान रहीं, जो शिक्षा की समग्र प्रगति में बाधक थीं:
• ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों की सीमित पहुँच: जोधपुर जिले के ग्रामीण और सुदूरवर्ती क्षेत्रों के छात्रों को अभी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता रहा। परिवहन, आर्थिक स्थिति, सामाजिक रूढ़ियाँ, और जागरूकता की कमी जैसे कारणों से ये विद्यार्थी उच्च शिक्षा संस्थानों तक पहुँचने में पिछड़ गए।
• राजकीय विद्यालयों में संसाधनों की कमी: यद्यपि शैक्षणिक योजनाएं चलाई गईं, लेकिन कई सरकारी विद्यालयों में अभी भी शिक्षकों की कमी, प्रयोगशालाओं की अनुपस्थिति, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की असमानता, और भौतिक संसाधनों की न्यूनता जैसी समस्याएं मौजूद रहीं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में क्षेत्रीय विषमता बनी रही।
• गुणवत्ता बनाम मात्रात्मक विस्तार का द्वंद्व: विद्यालयों और महाविद्यालयों की संख्या में वृद्धि तो हुई, परंतु सभी संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता समान नहीं रही। कई निजी संस्थानों का उद्देश्य केवल व्यावसायिक लाभ रहा, जिससे शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम की गहराई, और छात्रों के सर्वांगीण विकास की उपेक्षा हुई।
• सामाजिक-आर्थिक विषमता: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और अनुसूचित जाति/जनजाति के छात्रों के लिए शिक्षा अब भी एक संघर्ष बना रहा। छात्रवृत्तियों और आरक्षण जैसी योजनाओं के बावजूद कई विद्यार्थी प्रारंभिक स्तर पर ही शिक्षा से वंचित हो गए। लिंग आधारित असमानता भी कुछ क्षेत्रों में मौजूद रही, विशेषकर ग्रामीण समाज में बालिकाओं की उच्च शिक्षा को लेकर झिझक बनी रही।
• डिजिटल डिवाइड: कोरोना महामारी के चलते ऑनलाइन शिक्षा का चलन बढ़ा, परंतु इसने डिजिटल अंतर को भी उजागर किया। ग्रामीण और पिछड़े वर्ग के छात्रों के पास स्मार्टफोन, इंटरनेट, और उपयुक्त डिजिटल सामग्री की कमी के कारण वे शैक्षणिक मुख्यधारा से कट गए।

निष्कर्ष
सन् 1947 से लेकर 2020 ई. तक का कालखंड जोधपुर नगर की शैक्षिक यात्रा में एक ऐतिहासिक परिवर्तन का साक्षी रहा है। यह यात्रा न केवल संस्थागत विकास की कहानी कहती है, बल्कि सामाजिक चेतना, तकनीकी प्रगति, और वैचारिक नवाचार के सम्मिलित प्रयासों का परिणाम भी है। स्वतंत्रता पूर्व की सीमित संसाधन-युक्त व्यवस्था से लेकर स्वतंत्रता उपरांत शिक्षा के सार्वभौमीकरण की दिशा में उठाए गए कदमों ने जोधपुर को एक ज्ञान-आधारित समाज की ओर अग्रसर किया।
विशेषतः जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय की स्थापना ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर स्थापित किया, जबकि IIT, AIIMS, NIFT, NLU जैसे संस्थानों की उपस्थिति ने इस नगर को राष्ट्रीय शिक्षा मानचित्र पर एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया। महिला शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, अनुसंधान, नवाचार, और डिजिटल शिक्षा जैसे विविध क्षेत्रों में हुई प्रगति ने जोधपुर को एक बहुआयामी शैक्षणिक केन्द्र में परिवर्तित कर दिया।
हालाँकि इस विकास यात्रा में चुनौतियाँ भी रही हैं – जैसे कि ग्रामीण छात्रों की पहुँच, शिक्षा की गुणवत्ता में असमानता, डिजिटल संसाधनों की विषमता, एवं सामाजिक-आर्थिक बाधाएँ – परंतु इन सबके बावजूद यह स्पष्ट है कि जोधपुर की शैक्षणिक संरचना समय के साथ अधिक सुदृढ़ और समावेशी होती गई है।
आज जोधपुर न केवल एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नगर है, बल्कि यह शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार का एक उभरता हुआ केन्द्र भी है। भविष्य की दृष्टि से यह अत्यंत आवश्यक होगा कि:
• गुणवत्ता और समानता पर आधारित शैक्षणिक नीतियाँ बनाई जाएँ,
• डिजिटल तकनीक और नवाचार को ग्रामीण स्तर तक पहुँचाया जाए,
• और स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए कौशल विकास को प्रोत्साहित किया जाए।]

संदर्भ सूची
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Keywords .
Field Arts
Published In Volume 16, Issue 1, January-June 2025
Published On 2025-04-22
Cite This जोधपुर नगर में शैक्षणिक संस्थाओं का विकास (1947-2020 ई. के विशेष संदर्भ में) - माया कँवर, डॉ. भगवान सिंह शेखावत - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025.

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