Journal of Advances in Developmental Research

E-ISSN: 0976-4844     Impact Factor: 9.71

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गोदान: स्त्री विश्लेषण

Author(s) सुरज्ञान चौधरी
Country India
Abstract प्रेमचन्द आदर्शोमुखी, यर्थाथवादी उपन्यासकार रहे है। प्रेमचन्द के साहित्य का मूल स्वर समाज सुधार है। कला का कार्य मनोरंजन नहीं सामाजिक सोद्देश्यता है, यही सूत्र इनके लेखन का आधार है। 1936 ई. में प्रकाशित गोदान उपन्यास को महाउपन्यास कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि प्रेमचन्द ने इसमें भारतीय जनमानस की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक परिस्थितियों के साथ-साथ नारी जीवन की समस्याओं को भी उकेरा है।
मूलतः गोदान कृषक जीवन की महाकाव्यात्मक त्रासदी माना जाता है लेकिन इसमें मुंशी जी ने सामाजिक कढ़ियों, अंधविश्वासों के बंधन में छटपटाती नारी की मार्मिक वेदना का भी चित्रण किया है। उपन्यास का जब भी हम अध्ययन करते हैं तो स्वयं को भूलकर हम इसके पात्रों के साथ सामजस्य में इनके सुख दुःख स्वयं के बन जाते है।
मध्यमवर्गीय कृषक जीवन में होरी उपन्यास में मुख्य नायक है तो वही धनिया (होरी की पत्नी) नायिका के रूप में सामने आती है। दोनों को एक दूसरे का सहारा बनाकर दिखाया है। प्रेमचन्द ने स्वयं स्त्री को जागृत करते हुए दिखाया है। उनका मानना है कि नारी अपने अधिकारों की रक्षा स्वयं करेगी तभी वह इस समाज में जी पायेगी। वर्षों पूर्व प्रेमचन्द ने अपने साहित्य में नारी जागरण का जो आह्वान किया वो आज भी प्रासंगिक बना हुआ है।
गोदान में धनिया, गोविन्दी पात्रों के माध्यम से प्रेमचन्द ने महिलाओं का परिवार प्रेम, कर्तव्यों के प्रति जो समर्पण दिखाया है उस समय की परिस्थितियों को दर्शाता है। प्रस्तुत शोध पत्र में प्रेमचन्द द्वारा रचित गोदान में स्त्री पात्रों के जीवन का अवलोकन किया है।
Keywords .
Field Arts
Published In Volume 16, Issue 1, January-June 2025
Published On 2025-06-07
Cite This गोदान: स्त्री विश्लेषण - सुरज्ञान चौधरी - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025.

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