
Journal of Advances in Developmental Research
E-ISSN: 0976-4844
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Volume 16 Issue 2
2025
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राजस्थान में कृषि उद्योग का प्रभाव: एक भौगोलिक अध्ययन
Author(s) | पप्पू लाल रैगर |
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Country | India |
Abstract | भारत एक कृषि प्रधान देश के रूप में विश्व में पहचाना जाता है, जहाँ लगभग आधी से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि और इससे संबंधित उद्योगों पर निर्भर है। इस कृषि प्रधान व्यवस्था में राजस्थान का स्थान विशेष महत्व का है। राजस्थान, जो भारत का सबसे बड़ा राज्य है, भौगोलिक दृष्टि से विविधताओं और चुनौतियों से भरा हुआ है। मरुस्थलीय क्षेत्रों से लेकर सिंचित मैदानों तक, यहाँ कृषि की पद्धतियाँ, फसल संरचना और उत्पादन प्रक्रियाएँ प्रत्येक क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप ढली हुई दिखाई देती हैं। इसीलिए कहा जा सकता है कि राजस्थान की कृषि केवल एक आर्थिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह यहाँ के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन की आत्मा है। कृषि उद्योग का अर्थ केवल पारंपरिक खेती से नहीं है, बल्कि इसमें कृषि आधारित प्रसंस्करण उद्योग, मूल्य संवर्धन, विपणन तंत्र और कृषि उत्पादों पर आधारित लघु एवं मध्यम उद्योगों का भी समावेश होता है। उदाहरणस्वरूप, गेहूँ और बाजरे का आटा मिल उद्योग, ग्वार गम उद्योग, कपास आधारित वस्त्र उद्योग, तिलहन से संबंधित तेल उद्योग और गन्ने पर आधारित चीनी उद्योग आदि राजस्थान के कृषि उद्योग की जीवन्त मिसालें हैं। इस प्रकार कृषि उद्योग केवल किसानों की आय का साधन नहीं है, बल्कि यह राज्य की औद्योगिक संरचना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है। भौगोलिक दृष्टिकोण से देखें तो राजस्थान में कृषि की विविधता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। थार मरुस्थल वाले पश्चिमी भाग में सीमित वर्षा और शुष्क जलवायु के कारण परंपरागत रूप से शुष्क क्षेत्रीय फसलें जैसे बाजरा, मूँग, ग्वार, मोठ और चना उगाए जाते हैं। वहीं पूर्वी और उत्तरी राजस्थान में गंग नहर, भाखड़ा नहर तथा इंदिरा गांधी नहर परियोजनाओं ने कृषि परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है, जिससे गेहूँ, सरसों, कपास और गन्ना जैसी नकदी फसलों की खेती सम्भव हो पाई है। दक्षिणी राजस्थान, विशेष रूप से उदयपुर और बांसवाड़ा जैसे आदिवासी क्षेत्रों में मक्का और धान की खेती स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करती है। कृषि उद्योग का प्रभाव केवल उत्पादन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह राज्य की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना पर गहरा असर डालता है। सबसे पहले, कृषि उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन का सबसे बड़ा साधन है, क्योंकि खेती से लेकर प्रसंस्करण, भंडारण और विपणन तक लाखों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हुए हैं। दूसरा, यह औद्योगिक क्षेत्र को कच्चा माल उपलब्ध कराता है। कपास, तिलहन, ग्वार और गन्ना जैसी फसलें न केवल किसानों की आय बढ़ाती हैं बल्कि वस्त्र उद्योग, तेल उद्योग, ग्वार गम उद्योग और चीनी उद्योग के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराती हैं। तीसरा, कृषि उद्योग महिला सशक्तिकरण में भी योगदान देता है, क्योंकि राजस्थान के ग्रामीण परिवारों में महिलाएँ बुवाई, कटाई, प्रसंस्करण और पशुपालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। राजस्थान में कृषि उद्योग के विकास से पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय प्रभाव भी स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। सिंचाई की आधुनिक पद्धतियाँ, जल प्रबंधन के उपाय, वृक्षारोपण और मृदा संरक्षण योजनाएँ कृषि उत्पादन को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देती हैं। हालाँकि, अत्यधिक भूजल दोहन और रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी उत्पन्न करता है, जिनका समाधान भौगोलिक दृष्टिकोण से योजनाबद्ध रणनीतियों के माध्यम से किया जाना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, कृषि उद्योग क्षेत्रीय असमानताओं के समाधान में भी अहम भूमिका निभाता है। पश्चिमी राजस्थान, जो अब तक आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ माना जाता था, नहर परियोजनाओं और कृषि उद्योगों के विस्तार से धीरे-धीरे विकास की ओर अग्रसर हो रहा है। वहीं पूर्वी और दक्षिणी राजस्थान में खाद्यान्न सुरक्षा और स्थानीय बाजारों के विकास ने ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है। इस प्रकार, प्रस्तावना से यह स्पष्ट होता है कि राजस्थान में कृषि उद्योग केवल आर्थिक गतिविधि भर नहीं है, बल्कि यह राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक संरचना और औद्योगिक विकास से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह अध्ययन न केवल राजस्थान में कृषि उद्योग के प्रभाव को समझने का प्रयास करेगा, बल्कि इसके भौगोलिक आयामों का विश्लेषण कर राज्य के समग्र विकास में इसकी भूमिका को उजागर करेगा। |
Keywords | . |
Field | Arts |
Published In | Volume 16, Issue 2, July-December 2025 |
Published On | 2025-09-04 |
Cite This | राजस्थान में कृषि उद्योग का प्रभाव: एक भौगोलिक अध्ययन - पप्पू लाल रैगर - IJAIDR Volume 16, Issue 2, July-December 2025. |
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10.71097/IJAIDR
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