Journal of Advances in Developmental Research

E-ISSN: 0976-4844     Impact Factor: 9.71

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भारत में कौशल विकास की दिशा में एक पहल: PMKVY की शैक्षिक संरचना का अध्ययन

Author(s) Shivani Chaudhary, Dr. Shilpi Purohit
Country India
Abstract भारत एक युवा देश है, जहाँ की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा 15 से 35 वर्ष की आयु के बीच है। ऐसे में देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति युवाओं की उत्पादकता पर निर्भर करती है। लेकिन शिक्षा व्यवस्था और औद्योगिक मांग के बीच की खाई के कारण कई युवा औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी रोजगार पाने में असमर्थ रहते हैं। इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य युवाओं को व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण देकर उन्हें उद्योगों के अनुकूल तैयार करना था।
PMKVY न केवल बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने का प्रयास करती है, बल्कि यह कौशल विकास के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। यह योजना युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें प्रमाण-पत्र भी देती है, जिससे उनकी रोजगार की संभावनाएं बढ़ती हैं। योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना, पाठ्यक्रम की मान्यता, प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण, और मूल्यांकन की व्यवस्था की गई है।
प्रस्तुत शोध पत्र में इस योजना की शैक्षिक संरचना का समग्र अध्ययन किया गया है, जिसमें पाठ्यक्रमों की अद्यतनीयता, प्रशिक्षण की गुणवत्ता, केंद्रों की भौगोलिक उपलब्धता, प्रशिक्षकों की दक्षता और योजना के प्रभावों का विश्लेषण शामिल है। इसके साथ ही यह भी देखा गया है कि किस प्रकार यह योजना युवाओं को न केवल रोजगार प्रदान करती है, बल्कि उन्हें स्वरोजगार के लिए भी सक्षम बनाती है। शोध में यह भी उजागर किया गया है कि इस योजना के क्रियान्वयन में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयाँ भी सामने आई हैं, जैसे प्रशिक्षण केंद्रों की अपर्याप्तता, प्रशिक्षकों की कमी, पाठ्यक्रम की पुरातनता, और रोजगार के स्थायित्व की समस्या। इसके बावजूद, योजना ने देश के अनेक युवाओं के जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस शोध का निष्कर्ष यह है कि यदि इन चुनौतियों को दूर कर योजना की गुणवत्ता और पहुँच में सुधार किया जाए, तो यह भारत के कौशल विकास के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है।

1. भूमिका:
भारत में बेरोजगारी की समस्या न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत गंभीर है। देश की विशाल युवा जनसंख्या, जो कि राष्ट्रीय संसाधनों में एक महत्त्वपूर्ण पूंजी मानी जाती है, यदि समुचित प्रशिक्षण और अवसरों से वंचित रह जाए तो यह पूंजी बोझ में परिवर्तित हो सकती है। पारंपरिक शिक्षा प्रणाली, जो मुख्यतः सैद्धांतिक ज्ञान पर केंद्रित रही है, आज के प्रतिस्पर्धी और उद्योगोन्मुख युग में अपर्याप्त सिद्ध हो रही है। इसके परिणामस्वरूप अनेक युवा शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोजगार योग्य नहीं बन पाते, जिससे ‘स्किल गैप’ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2015 में आरंभ की गई प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) एक महत्वपूर्ण पहल बनकर सामने आई है। यह योजना न केवल युवाओं को उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने का प्रयास करती है, बल्कि उनके आत्मविश्वास, रोजगार क्षमता, और उद्यमिता को भी प्रोत्साहित करती है। इस योजना की विशेषता यह है कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रमों को राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचे (NSQF) के अनुरूप विकसित करती है, जिससे प्रशिक्षुओं को देशभर में मान्यता प्राप्त प्रमाणपत्र भी प्राप्त होता है। PMKVY के अंतर्गत युवाओं को उनके रुचि और क्षमता के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाता है, साथ ही उन्हें प्रशिक्षण के दौरान स्टाइपेंड, जॉब फेयर में भागीदारी, और करियर परामर्श जैसी सुविधाएँ भी प्रदान की जाती हैं। यह योजना न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण युवाओं को भी ध्यान में रखकर संचालित की जाती है, ताकि समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
प्रस्तुत शोध पत्र की भूमिका इस योजना की शैक्षिक संरचना और उसकी व्यावसायिक प्रभावशीलता को समझने में सहायक सिद्ध होगी। यह अध्ययन न केवल योजना की अवधारणा और उद्देश्यों को स्पष्ट करता है, बल्कि इसकी व्यावहारिक चुनौतियों और संभावनाओं पर भी विचार करता है। इसके माध्यम से यह जानने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार एक राष्ट्रीय स्तर की योजना शिक्षा और कौशल विकास के समन्वय से युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सार्थक भूमिका निभा सकती है।

2. शोध की आवश्यकता एवं उद्देश्य:
इस शोध का उद्देश्य PMKVY की शैक्षिक संरचना का गहन विश्लेषण करना है। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या यह योजना युवाओं को वह व्यावसायिक शिक्षा दे पा रही है, जिसकी उन्हें वर्तमान और भविष्य के उद्योगों में सफलता के लिए आवश्यकता है?
उद्देश्य:
• PMKVY की शैक्षिक रूपरेखा का अध्ययन
• पाठ्यक्रम की संरचना और अद्यतन प्रक्रिया का मूल्यांकन
• प्रशिक्षकों की गुणवत्ता और उनकी तैयारी का विश्लेषण
• प्रशिक्षण केंद्रों की पहुंच और प्रभावशीलता की समीक्षा
• प्रशिक्षित युवाओं की रोजगारोन्मुख सफलता का आकलन

3. शैक्षिक संरचना का विवरण:
3.1 पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) की सफलता इस बात पर बहुत कुछ निर्भर करती है कि उसके अंतर्गत प्रस्तावित पाठ्यक्रम कितने प्रासंगिक और उद्योगोन्मुख हैं। इस योजना के अंतर्गत विभिन्न सेक्टर स्किल काउंसिल्स (SSC) की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जो विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों के विशेषज्ञों और संगठनों के सहयोग से पाठ्यक्रमों को तैयार करते हैं। इन पाठ्यक्रमों में आईटी सेवाएँ, खुदरा व्यापार, स्वास्थ्य सेवा, निर्माण, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, पर्यटन और आतिथ्य, ऑटोमोबाइल, सौंदर्य और कल्याण, और लॉजिस्टिक्स जैसे सेक्टर शामिल हैं। इन क्षेत्रों में कौशल विकास की दिशा में पाठ्यक्रमों का निर्माण उद्योगों की मांग और कार्यस्थल की आवश्यकताओं के अनुरूप किया जाता है। हालांकि, कई समीक्षात्मक अध्ययनों और रिपोर्टों से यह ज्ञात हुआ है कि इन पाठ्यक्रमों का पुनरीक्षण और अद्यतन अपेक्षाकृत धीमी गति से होता है, जिससे वे तेजी से बदलते तकनीकी और बाज़ार परिवेश के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते। कुछ विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया है कि स्थानीय आवश्यकताओं और क्षेत्रीय उद्योगों की मांग के आधार पर पाठ्यक्रमों में लचीलापन और अनुकूलनशीलता की आवश्यकता है, ताकि प्रशिक्षु स्थानीय स्तर पर भी अधिक प्रभावी रूप से कार्य कर सकें।
3.2 प्रशिक्षण की गुणवत्ता: किसी भी कौशल विकास योजना की सफलता में प्रशिक्षण की गुणवत्ता की भूमिका सर्वाधिक होती है। PMKVY के अंतर्गत प्रदान किया जाने वाला प्रशिक्षण प्रशिक्षकों की योग्यता, प्रशिक्षण पद्धतियों, प्रशिक्षण केंद्रों की भौतिक सुविधाओं, और शिक्षण सामग्री की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। योजना के कुछ कार्यान्वयन क्षेत्रों में यह देखा गया है कि प्रशिक्षकों में आवश्यक औद्योगिक अनुभव और तकनीकी दक्षता की कमी रही है, जिससे वे प्रशिक्षणार्थियों को उद्योग-सम्बंधित व्यावहारिक ज्ञान देने में असमर्थ रहे।
इसके अतिरिक्त, कई प्रशिक्षण सत्रों में इंटरएक्टिव या प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षण की अपेक्षा केवल सैद्धांतिक व्याख्यानों पर अधिक बल दिया गया, जिससे प्रशिक्षु व्यवहारिक रूप से सशक्त नहीं बन पाए। इसके परिणामस्वरूप प्रशिक्षण पूर्ण करने के बावजूद प्रशिक्षु कार्यस्थल की जटिलताओं से निपटने में हिचकिचाते पाए गए। इसलिए यह आवश्यक है कि प्रशिक्षकों की सतत् प्रशिक्षण प्रणाली, कार्यानुभव आधारित प्रशिक्षण सामग्री, और आंतरिक मूल्यांकन की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी एवं सुदृढ़ बनाया जाए।
3.3 मूल्यांकन और प्रमाणन: PMKVY के अंतर्गत एक निर्धारित समयावधि के बाद प्रशिक्षुओं का मूल्यांकन थर्ड पार्टी एसेसर द्वारा किया जाता है, जिससे निष्पक्षता और मानकीकरण सुनिश्चित किया जा सके। यह प्रक्रिया प्रशिक्षुओं के ज्ञान, कौशल, और दक्षता का परीक्षण करती है और इसके आधार पर नेशनल स्किल डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन (NSDC) द्वारा मान्यता प्राप्त प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है। इस प्रमाणपत्र की मान्यता देशव्यापी होती है और यह प्रशिक्षुओं को औपचारिक रूप से रोजगार बाजार में प्रवेश दिलाने में सहायक बनता है। हालाँकि, कई बार यह पाया गया है कि कुछ क्षेत्रों में मूल्यांकन प्रक्रिया केवल औपचारिकता बनकर रह जाती है, और मूल्यांकनकर्ताओं की विशेषज्ञता भी संदेह के घेरे में रही है। साथ ही, प्रमाणपत्र की औद्योगिक मान्यता कुछ क्षेत्रों में सीमित रही है, जिससे प्रशिक्षुओं को अपेक्षित वेतन और सम्मानजनक कार्य-स्थितियाँ नहीं मिल सकीं। इसलिए इस प्रक्रिया की पारदर्शिता, ईमानदारी, और उद्योग से जुड़ाव को और सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है।
3.4 प्रशिक्षण केंद्रों की उपलब्धता: शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में प्रशिक्षण केंद्रों की संख्या काफी कम है। PMKVY का उद्देश्य चाहे समावेशी विकास रहा हो, लेकिन कार्यान्वयन स्तर पर यह अंतर साफ़ तौर पर दिखाई देता है। अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में या तो कोई प्रशिक्षण केंद्र उपलब्ध नहीं हैं, या जो हैं भी, वे भौगोलिक दृष्टि से इतनी दूरी पर हैं कि आवागमन की सुविधा और समय दोनों ही प्रशिक्षुओं के लिए चुनौती बन जाते हैं।
इसके अतिरिक्त, कई केंद्रों की भौतिक अधोसंरचना (जैसे—प्रशिक्षण उपकरण, कक्षाएं, प्रयोगशालाएँ, इंटरनेट सुविधा आदि) और तकनीकी संसाधन अत्यंत सीमित हैं, जिससे प्रशिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती है। कई केंद्रों में प्रशिक्षण के लिए आवश्यक उपकरण पुराने या अनुपयोगी पाए गए हैं, जिससे व्यावहारिक प्रशिक्षण की प्रभावशीलता कम हो जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि PMKVY के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर नवीन और सुलभ प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना करें, विशेषकर ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में। साथ ही, मौजूदा केंद्रों के अधोसंरचना विकास और तकनीकी उन्नयन पर भी जोर दिया जाए, ताकि प्रत्येक इच्छुक युवा को समुचित प्रशिक्षण का अवसर मिल सके।

4. प्रमुख चुनौतियाँ:
4.1 प्रशिक्षकों की गुणवत्ता की समस्या: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के क्रियान्वयन में एक बड़ी चुनौती प्रशिक्षकों की गुणवत्ता को लेकर रही है। कई प्रशिक्षण केंद्रों पर यह पाया गया कि वहाँ के प्रशिक्षकों के पास आवश्यक औद्योगिक अनुभव या विशिष्ट प्रशिक्षण विधियों की जानकारी का अभाव था। इसके कारण प्रशिक्षु उस व्यावहारिक दक्षता को हासिल नहीं कर पाए, जो उन्हें रोजगार के लिए तैयार कर सके। प्रशिक्षण केवल सैद्धांतिक जानकारी तक सीमित रह गया, जबकि उद्योगों की अपेक्षा व्यवहारिक और तकनीकी कुशलता की होती है। इसके अतिरिक्त, प्रशिक्षकों के लिए नियमित रूप से “ट्रेन द ट्रेनर” जैसे कार्यक्रमों की भी कमी रही है, जिससे उनका ज्ञान अद्यतन नहीं हो सका। ऐसे में यह आवश्यक है कि प्रशिक्षकों की नियुक्ति योग्यता आधारित हो तथा उनकी निरंतर दक्षता वृद्धि सुनिश्चित की जाए।
4.2 पाठ्यक्रम का सीमित अद्यतन: PMKVY के तहत बनाए गए पाठ्यक्रम विभिन्न सेक्टर स्किल काउंसिल्स द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, किंतु उद्योगों में हो रहे तेजी से तकनीकी परिवर्तनों के साथ पाठ्यक्रमों का अद्यतन समान गति से नहीं हो पा रहा है। इससे प्रशिक्षु अक्सर उन तकनीकों और प्रक्रियाओं की जानकारी के साथ प्रशिक्षण पूर्ण करते हैं जो अब कार्यस्थलों पर प्रासंगिक नहीं रह गई हैं। यह समस्या विशेष रूप से आईटी, ऑटोमोबाइल और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में अधिक गंभीर रूप से सामने आती है, जहाँ टेक्नोलॉजी में बदलाव की गति अत्यधिक तेज़ होती है। इस स्थिति में पाठ्यक्रमों को अधिक लचीला, मॉड्यूलर और अपडेटेबल बनाने की आवश्यकता है, ताकि प्रशिक्षण वास्तव में उद्योगों की मौजूदा मांगों के अनुरूप हो।
4.3 प्रशिक्षण के बाद रोजगार की स्थायित्वहीनता: PMKVY के तहत प्रशिक्षित युवाओं को प्रारंभिक चरण में रोजगार तो प्राप्त हो जाता है, किंतु यह रोजगार प्रायः अस्थायी और असंगठित क्षेत्र में होता है। बड़ी संख्या में प्रशिक्षु कॉन्ट्रैक्ट आधारित या अल्पकालिक नौकरियों तक ही सीमित रह जाते हैं, जिससे उनके आर्थिक सशक्तिकरण की प्रक्रिया अधूरी रह जाती है। इसके अलावा, इन नौकरियों में वेतन, सामाजिक सुरक्षा, और भविष्य की स्थिरता का भी अभाव होता है, जिससे प्रशिक्षु दोबारा बेरोजगारी की स्थिति में आ सकते हैं। स्थायी और संगठित रोजगार की कमी योजना की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है और यह स्पष्ट करती है कि औद्योगिक सहभागिता और रोजगार सृजन रणनीतियों में सुधार की आवश्यकता है।
4.4 स्वरोजगार के लिए सहायता की कमी: PMKVY के तहत स्वरोजगार को बढ़ावा देने का भी लक्ष्य है, लेकिन प्रशिक्षु जब स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाते हैं, तो उन्हें अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनमें प्रमुख हैं – प्रारंभिक पूंजी की उपलब्धता, बैंक ऋण प्राप्त करने में जटिलताएँ, बाजार का ज्ञान, विपणन रणनीति, ब्रांडिंग, और तकनीकी परामर्श की कमी। कई मामलों में यह देखा गया है कि प्रशिक्षु प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद अपने व्यवसाय शुरू तो करते हैं, लेकिन उचित मार्गदर्शन और सहायता के अभाव में वे लंबे समय तक टिक नहीं पाते। सरकार द्वारा उपलब्ध कुछ योजनाएँ जैसे मुद्रा योजना, स्टार्टअप इंडिया, आदि से जोड़ने की प्रक्रिया भी प्रशिक्षण केंद्रों में प्रभावी रूप से संचालित नहीं की जा सकी। इसलिए यह आवश्यक है कि PMKVY को अन्य आर्थिक सहायता और उद्यमिता विकास योजनाओं से जोड़ने की प्रक्रिया को सरल और समन्वित बनाया जाए, ताकि प्रशिक्षु केवल प्रशिक्षण ही नहीं, बल्कि व्यवसायिक स्थायित्व और विकास की दिशा में भी सफल हो सकें।

5. योजना की सामाजिक-आर्थिक प्रभावशीलता: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) का उद्देश्य केवल युवाओं को रोजगारोन्मुख प्रशिक्षण प्रदान करना नहीं, बल्कि उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना भी है। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) और नीति आयोग द्वारा 2021 में जारी एक संयुक्त रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया कि इस योजना के अंतर्गत प्रशिक्षित युवाओं की औसत मासिक आय, अप्रशिक्षित युवाओं की तुलना में 15-20% अधिक रही। इसका तात्पर्य यह है कि कौशल विकास प्रशिक्षण ने न केवल उनकी आय में वृद्धि की, बल्कि जीवन स्तर में सुधार और स्वावलंबन की भावना को भी बल प्रदान किया।
ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में यह योजना विशेष रूप से प्रभावशाली सिद्ध हुई है, जहाँ पारंपरिक रोजगार के अवसर सीमित हैं। महिलाओं के बीच प्रशिक्षण की बढ़ती भागीदारी ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को भी बल दिया है। प्रशिक्षु युवाओं में आत्मविश्वास और समाज में स्वीकार्यता की भावना में वृद्धि देखी गई है, जिससे कौशल और सम्मान की संस्कृति का प्रसार हुआ है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षण केंद्रों के माध्यम से स्थानीय उद्योगों और समुदायों के साथ सहयोग को भी बढ़ावा मिला है। हालाँकि, यह भी देखा गया कि योजना की सफलता की दर भौगोलिक और सामाजिक पृष्ठभूमियों के अनुसार भिन्न रही है। विकसित क्षेत्रों में जहाँ अधोसंरचना और औद्योगिक संपर्क अधिक है, वहाँ योजना के प्रभाव अपेक्षाकृत अधिक सकारात्मक रहे। इसके विपरीत, पिछड़े क्षेत्रों में योजना के समुचित क्रियान्वयन के लिए और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है।
कुल मिलाकर, PMKVY ने देश में कौशल विकास को एक सामाजिक आंदोलन का स्वरूप प्रदान किया है, जिससे युवा केवल नौकरी के लिए तैयार नहीं हो रहे, बल्कि वे रोजगार सृजनकर्ता और नवाचारकर्ता की भूमिका में भी आ रहे हैं। यदि योजना की चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित किया जाए, तो यह भविष्य में भारत की आर्थिक प्रगति और सामाजिक समावेशन के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बन सकती है।

6. सुझाव:
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) को अधिक प्रभावी और समावेशी बनाने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक सुझाव प्रस्तुत किए जा सकते हैं:
• पाठ्यक्रमों का नियमित अद्यतन: तेजी से बदलते तकनीकी और औद्योगिक परिवेश के अनुरूप पाठ्यक्रमों का निर्माण और समय-समय पर उनका पुनरीक्षण आवश्यक है। इसके लिए विभिन्न सेक्टर स्किल काउंसिल्स (SSC) को उद्योग विशेषज्ञों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए, ताकि प्रशिक्षण में दी जा रही जानकारी उद्योगों की मौजूदा आवश्यकताओं से मेल खा सके।
• प्रशिक्षकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना: प्रशिक्षण की गुणवत्ता सीधे प्रशिक्षकों की दक्षता पर निर्भर करती है। अतः यह अनिवार्य किया जाए कि प्रत्येक प्रशिक्षक को प्रशिक्षण प्रारंभ करने से पूर्व एक प्रमाणित प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा करना हो, जिसमें न केवल विषयवस्तु की विशेषज्ञता हो, बल्कि आधुनिक शिक्षण विधियों का भी समावेश हो।
• ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षण केंद्रों की संख्या और गुणवत्ता में वृद्धि: ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में अधिक संख्या में प्रशिक्षण केंद्र खोलने की आवश्यकता है। इन केंद्रों को उपयुक्त अधोसंरचना, उपकरणों और इंटरनेट सुविधा से सुसज्जित किया जाए, ताकि स्थानीय युवाओं को बेहतर प्रशिक्षण मिल सके और उन्हें शहरों की ओर पलायन करने की आवश्यकता न पड़े।
• स्वरोजगार को बढ़ावा देने हेतु सहायता प्रणाली: स्वरोजगार को सफलतापूर्वक अपनाने के लिए प्रशिक्षुओं को वित्तीय सहायता, तकनीकी मार्गदर्शन, विपणन सहयोग, और व्यवसाय प्रबंधन परामर्श की आवश्यकता होती है। इसके लिए सरकार को बैंकों, माइक्रोफाइनेंस संस्थानों, स्टार्टअप इनक्यूबेटरों, और उद्योग विशेषज्ञों के सहयोग से एक समन्वित सहायता ढांचा तैयार करना चाहिए, जो प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षण के बाद भी सतत मार्गदर्शन प्रदान कर सके।
इन सुझावों पर अमल करके PMKVY को न केवल एक रोजगार सृजन योजना बल्कि एक व्यापक मानव संसाधन विकास कार्यक्रम के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे भारत के युवा वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी और आत्मनिर्भर बन सकें।

7. निष्कर्ष:
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) भारत सरकार की एक दूरदर्शी और सशक्त पहल है, जिसका उद्देश्य देश के युवाओं को व्यावसायिक दक्षता प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। यह योजना न केवल प्रशिक्षण के माध्यम से रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाती है, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन की दिशा में भी एक प्रभावशाली कदम है। इसकी शैक्षिक संरचना में पाठ्यक्रम की प्रासंगिकता, प्रशिक्षण की गुणवत्ता, प्रशिक्षकों की दक्षता, और प्रशिक्षण केंद्रों की उपलब्धता जैसे विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है। हालाँकि, इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि योजना की सफलता को सीमित करने वाली कुछ चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं, जैसे प्रशिक्षकों की गुणवत्ता में असमानता, पाठ्यक्रमों का समयबद्ध अद्यतन न होना, रोजगार की स्थायित्वहीनता, और स्वरोजगार के लिए आवश्यक सहयोग की कमी। इन मुद्दों को यदि दूर कर लिया जाए, तो यह योजना ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में युवाओं के लिए एक प्रभावी परिवर्तन का माध्यम बन सकती है।
PMKVY का वास्तविक उद्देश्य केवल तकनीकी या व्यावसायिक प्रशिक्षण देना नहीं है, बल्कि एक ऐसे कार्यबल का निर्माण करना है जो बदलती वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में भी न केवल स्वयं को स्थापित कर सके, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक प्रगति में भी सक्रिय भूमिका निभा सके। अतः, इसके पाठ्यक्रमों को उद्योगों के साथ अधिकतम समन्वय में रखा जाए, प्रशिक्षकों को गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण मिले, और स्वरोजगार की दिशा में नीति स्तर पर ठोस सहयोग प्रदान किया जाए, तो यह योजना भारत के युवा शक्ति को सशक्त करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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Keywords .
Field Arts
Published In Volume 16, Issue 1, January-June 2025
Published On 2025-04-21
Cite This भारत में कौशल विकास की दिशा में एक पहल: PMKVY की शैक्षिक संरचना का अध्ययन - Shivani Chaudhary, Dr. Shilpi Purohit - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025.

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