Journal of Advances in Developmental Research

E-ISSN: 0976-4844     Impact Factor: 9.71

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अज्ञेय के कथा साहित्य में व्यक्तिवाद और अस्तित्ववादी दृष्टि

Author(s) डॉ राकेश कुमार
Country India
Abstract हिंदी साहित्य के आधुनिक युग में अज्ञेय का नाम उन साहित्यकारों में अग्रगण्य है, जिन्होंने न केवल रचनात्मकता की परंपराओं को तोड़ा, बल्कि साहित्य को एक आध्यात्मिक, बौद्धिक और अस्तित्ववादी चेतना से समृद्ध किया। वे एक ऐसे सर्जक थे, जिन्होंने मनुष्य की भीतरी दुनिया की जटिलताओं को, उसकी वैयक्तिकता और अस्तित्वगत संकटों के साथ, बड़ी गहराई से अभिव्यक्त किया। अज्ञेय का कथा साहित्य केवल घटनाओं का क्रम नहीं, बल्कि एक दार्शनिक यात्रा है—व्यक्ति के आत्मसंघर्ष, समाज से उसके संबंध, और जीवन के मूल प्रश्नों की खोज की यात्रा।
बीसवीं शताब्दी के मध्यकाल में जब हिंदी कथा साहित्य सामाजिक यथार्थवाद और सामूहिक चेतना के प्रभाव में था, तब अज्ञेय ने व्यक्तिवाद को साहित्यिक विमर्श का केंद्र बनाया। उनके पात्र बहुधा उस समाज से टकराते हुए दिखाई देते हैं, जिसमें वे रहते हैं; वे नायक नहीं, चिंतनशील व्यक्ति होते हैं, जो अपने भीतर उतर कर उत्तर ढूँढ़ते हैं। अज्ञेय की कहानियों और उपन्यासों में यह दृष्टिकोण विशेष रूप से अस्तित्ववाद के निकट प्रतीत होता है—ऐसी विचारधारा जो व्यक्ति को उसके ‘स्वतंत्र अस्तित्व’, ‘चुनाव की स्वतंत्रता’ और ‘उत्तरदायित्व’ के साथ स्वीकारती है।
अस्तित्ववाद, जो यूरोपीय दर्शन की एक महत्वपूर्ण शाखा है और जिसे ज्याँ पॉल सार्त्र, कैमू, हाइडेगर आदि ने विकसित किया, अज्ञेय के साहित्य में भारतीय दृष्टिकोण और आत्मबोध के साथ समन्वित रूप में प्रकट होता है। उनकी रचनाओं में यह स्पष्ट है कि उन्होंने इस दर्शन को केवल वैचारिक रूप में नहीं, बल्कि रचनात्मक संवेदना के स्तर पर आत्मसात किया है।
यह शोध पत्र अज्ञेय के कथा साहित्य का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयास करता है कि कैसे उनके कथा-संसार में व्यक्तिवाद और अस्तित्ववादी दृष्टिकोण एक-दूसरे के पूरक बनकर उभरते हैं। शोध का उद्देश्य न केवल अज्ञेय की कथाओं की विषयवस्तु को समझना है, बल्कि यह भी देखना है कि इन दृष्टियों ने हिंदी साहित्य की कथा-परंपरा को किस प्रकार प्रभावित किया और समकालीन साहित्य में उसकी क्या प्रासंगिकता है।
इस शोधकार्य में प्राथमिक रूप से अज्ञेय की प्रमुख कथाओं और उपन्यासों—जैसे शेखर: एक जीवनी, नदी के द्वीप और परंपरा—का विश्लेषण किया गया है, तथा उपयुक्त संदर्भों और आलोचनात्मक ग्रंथों के माध्यम से उनकी साहित्यिक दृष्टि की विवेचना प्रस्तुत की गई है। साथ ही, यह प्रयास किया गया है कि साहित्यिक आलोचना की व्यापक पृष्ठभूमि में अज्ञेय की लेखनी का मूल्यांकन किया जाए, जिससे यह सिद्ध हो सके कि वे मात्र प्रयोगवादी लेखक नहीं, बल्कि गंभीर विचारक और संवेदनशील कथाकार भी थे।
इस प्रकार, यह शोध पत्र हिंदी साहित्य में अज्ञेय की योगदानशील कथा-दृष्टि को समग्रता से समझने का एक विनम्र प्रयास है।
Field Arts
Published In Volume 4, Issue 2, July-December 2013
Published On 2013-07-12
Cite This अज्ञेय के कथा साहित्य में व्यक्तिवाद और अस्तित्ववादी दृष्टि - डॉ राकेश कुमार - IJAIDR Volume 4, Issue 2, July-December 2013. DOI 10.71097/IJAIDR.v4.i2.1391
DOI https://doi.org/10.71097/IJAIDR.v4.i2.1391
Short DOI https://doi.org/g9gsgt

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