Journal of Advances in Developmental Research

E-ISSN: 0976-4844     Impact Factor: 9.71

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सहकारी बैंकों में ऋण वसूली की वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ एवं सुधार रणनीतियाँ: सवाई माधोपुर जिले के विशेष संदर्भ में एक विश्लेषण

Author(s) तेजराम मीना, डॉ. रीमा सिंह
Country India
Abstract सहकारी बैंक ग्रामीण वित्तीय संरचना की रीढ़ माने जाते हैं, जो किसानों, लघु उद्यमियों, पशुपालकों तथा निम्न-आय वर्ग के लोगों को ऋण उपलब्ध कराकर आर्थिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। किसी भी सहकारी संस्था की वित्तीय स्थिरता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके द्वारा वितरित किए गए ऋण समय पर वापस प्राप्त हो रहे हैं या नहीं। प्रस्तुत शोध-पत्र सवाई माधोपुर जिले की सहकारी समितियों एवं सहकारी बैंकों के ऋण वसूली प्रदर्शन, क्षेत्रवार वसूली दर, प्रभावित करने वाले कारकों तथा अपनाई जा रही रणनीतियों का विश्लेषण करता है। अध्ययन से ज्ञात हुआ कि कृषि ऋण में वसूली की स्थिति मानसून की अनिश्चितता तथा बाजार मूल्यों के उतार–चढ़ाव के कारण अपेक्षाकृत कमजोर है, जबकि पशुपालन व लघु उद्यम ऋणों में वसूली दर बेहतर है। शोध में तकनीकी अवसंरचना, प्रशिक्षित कर्मचारियों की उपलब्धता, डिजिटल भुगतान प्रणाली का विस्तार और ऋण उपयोग की निगरानी जैसे कारकों को वसूली सुधार के लिए निर्णायक पाया गया। अध्ययन नीति-निर्माताओं, सहकारी बैंकों, शोधार्थियों तथा ग्रामीण वित्तीय योजनाकारों के लिए उपयोगी सुझाव प्रदान करता है।

1. परिचय (Introduction)
भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि, पशुपालन, लघु उद्योग और ग्रामीण गैर-कृषि गतिविधियों पर आधारित है, जिनमें से अधिकांश गतिविधियाँ ऋण-आधारित होती हैं। ग्रामीण क्षेत्र में आय का स्थायी स्रोत न होने तथा उत्पादन प्रक्रिया पर प्राकृतिक परिस्थितियों का अधिक प्रभाव होने के कारण किसानों और ग्रामीण उद्यमियों को निरंतर वित्तीय समर्थन की आवश्यकता रहती है। इस संदर्भ में सहकारी बैंक और सहकारी समितियाँ ग्रामीण वित्तीय संरचना की रीढ़ की तरह कार्य करती हैं। ये संस्थाएँ किसानों, भूमिहीन मजदूरों, लघु उद्यमियों और पशुपालकों को पारंपरिक बैंकों की तुलना में अधिक सुलभ ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराती हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गति और स्थिरता बनी रहती है।
सहकारी बैंक न केवल ऋण प्रदान करते हैं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय जागरूकता बढ़ाने, बचत को प्रोत्साहित करने तथा उत्पादन–उन्मुख गतिविधियों के लिए पूंजी उपलब्ध कराने के महत्वपूर्ण साधन के रूप में भी कार्य करते हैं। इनके माध्यम से किसानों को फसल ऋण, अल्पकालिक ऋण, मध्यमकालीन ऋण, पशुपालन ऋण, उपभोक्ता ऋण तथा लघु उद्योग ऋण जैसी विविध वित्तीय सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। इस प्रकार, सहकारी बैंक आर्थिक विकास, कृषि उत्पादकता वृद्धि और ग्रामीण रोजगार विस्तार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
हालाँकि, सहकारी बैंकों की वित्तीय सेहत केवल ऋण वितरण तक सीमित नहीं रहती; इसकी वास्तविक सफलता ऋण वसूली की प्रभावशीलता पर निर्भर करती है। यदि ऋण वसूली कमजोर रहती है, तो बैंक की पुनर्वित्त क्षमता घट जाती है, संस्था पर बैड डेट (Non-Performing Assets–NPA) का बोझ बढ़ जाता है और दीर्घकाल में इसकी साख तथा संचालन क्षमता प्रभावित होती है। ऋण वितरण एक निरंतर चक्र है, जो तभी टिकाऊ बन सकता है जब वसूली नियमित और स्थिर हो। इसलिए ऋण वसूली किसी भी सहकारी बैंक की वित्तीय मजबूती का केंद्रीय तत्व माना जाता है।
सवाई माधोपुर जिला, जो राजस्थान का एक प्रमुख कृषि प्रधान क्षेत्र है, अपनी भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं के कारण सहकारी बैंकों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण अध्ययन क्षेत्र प्रस्तुत करता है। जिले की अर्थव्यवस्था मुख्यतः वर्षा-आधारित कृषि पर निर्भर है, जहाँ मानसून की अनियमितता अक्सर फसल उत्पादन को प्रभावित करती है। फसलों की उत्पादकता में उतार–चढ़ाव किसानों की आय पर सीधा असर डालता है, जिससे उनकी ऋण चुकौती क्षमता भी प्रभावित होती है। इसके साथ ही, ग्रामीण बाजारों में मूल्य अस्थिरता, ढाँचागत सुविधाओं की कमी, सीमित परिवहन प्रणाली और विपणन अवसंरचना की कमजोरियाँ भी ऋण वसूली को जटिल बनाती हैं।
सवाई माधोपुर की आर्थिक संरचना में पशुपालन, बागवानी और वनोपज-आधारित छोटी गतिविधियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन क्षेत्रों में आय अपेक्षाकृत स्थिर होती है, जिसे सहकारी बैंक विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहित करते हैं। राज्य सरकार और सहकारिता विभाग ने भी ऋण माफी, ब्याज सब्सिडी और किसान क्रेडिट कार्ड जैसी कई योजनाएँ लागू की हैं, जिनका उद्देश्य किसानों की पुनर्भुगतान क्षमता को मजबूत करना तथा ऋण चक्र को संतुलित बनाना है। फिर भी, व्यवहार में कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियाँ ऋण वसूली को प्रभावित करती हैं, जैसे ऋण का अनुचित उपयोग, डिजिटल भुगतान प्रणाली का सीमित प्रसार, समितियों में प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी, तथा ऋण लाभार्थियों में वित्तीय अनुशासन की कमी।
वर्षों से देखा गया है कि सवाई माधोपुर जिले में सहकारी बैंकों द्वारा ऋण वितरण में लगातार वृद्धि हुई है, लेकिन इस ऋण का प्रभावी उपयोग और समय पर वसूली अभी भी प्रमुख चुनौती बनी हुई है। यह स्थिति न केवल बैंकों की कार्यकुशलता को प्रभावित करती है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के वित्तीय विकास और निवेश चक्र को भी बाधित करती है। इसलिए, इस क्षेत्र में ऋण वसूली की वास्तविक स्थिति, संबंधित चुनौतियों और सुधार की संभावनाओं का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है।
प्रस्तुत शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य सवाई माधोपुर जिले के चयनित सहकारी बैंकों की ऋण वसूली प्रणाली का विस्तृत विश्लेषण करना है। इसमें ऋण वितरण की प्रवृत्तियों, वसूली की वर्तमान स्थिति, ऋण श्रेणीवार वसूली अंतर, वसूली प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक और संस्थागत कारकों तथा वसूली सुधार हेतु अपनाई जा रही रणनीतियों का अध्ययन किया जाएगा। यह शोध न केवल सहकारी बैंकों के संचालन से जुड़े प्रबंधकों और नीति-निर्माताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा, बल्कि ग्रामीण वित्तीय प्रशासन, सहकारिता प्रबंधन और कृषि अर्थशास्त्र के शोधार्थियों हेतु महत्वपूर्ण अकादमिक सामग्री भी प्रदान करेगा।

2. अध्ययन की आवश्यकता और महत्त्व (Need & Importance of the Study)
• सहकारी बैंकों की वित्तीय सेहत का सीधा संबंध ऋण वसूली दर से है।
• राजस्थान में बढ़ती कृषि जोखिम स्थिति व अनिश्चित मानसून ने ऋण वसूली को जटिल बना दिया है।
• कई सहकारी समितियाँ दीर्घकालिक वसूली संकट से जूझ रही हैं, जिससे ऋण पुनर्वितरण क्षमता प्रभावित होती है।
• वसूली दर बढ़ाने हेतु नई तकनीकों, नीतियों व रणनीतियों को अपनाने की आवश्यकता है।

3. शोध के उद्देश्य (Objectives of the Study)
1. सवाई माधोपुर जिले में सहकारी बैंकों की ऋण वसूली स्थिति का विश्लेषण।
2. ऋण श्रेणीवार वसूली दरों का तुलनात्मक अध्ययन।
3. वसूली पर प्रभाव डालने वाले सामाजिक, आर्थिक व संस्थागत कारकों की पहचान।
4. वर्तमान में अपनाई जा रही वसूली रणनीतियों का मूल्यांकन।
5. वसूली में सुधार हेतु व्यावहारिक व नीतिगत सुझाव प्रदान करना।


4. शोध पद्धति (Research Methodology)
किसी भी शोध अध्ययन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी कार्यप्रणाली कितनी वैज्ञानिक, व्यवस्थित और अनुसंधान उद्देश्यों के अनुरूप है। सवाई माधोपुर जिले के चयनित केंद्रीय सहकारी बैंक की ऋण वसूली स्थिति को समझने के लिए इस शोध में वर्णनात्मक (Descriptive) एवं विश्लेषणात्मक (Analytical) अनुसंधान पद्धति का उपयोग किया गया है। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य ऋण वितरण और वसूली के वास्तविक स्वरूप को समझना, वसूली दर को प्रभावित करने वाले कारकों की पहचान करना तथा वर्तमान चुनौतियों का मूल्यांकन करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आँकड़ों का संग्रह और विश्लेषण किया गया है।

4.1 अध्ययन क्षेत्र (Study Area)
यह अध्ययन राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले पर केंद्रित है, जो मुख्यतः कृषि प्रधान क्षेत्र है। इसकी आर्थिक संरचना वर्षा-आधारित कृषि, पशुपालन और वनोपज गतिविधियों पर आधारित है। जिले में सहकारी बैंक और प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS) किसानों व ग्रामीण उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ऋण वसूली की प्रकृति और चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए सवाई माधोपुर उपयुक्त क्षेत्र है क्योंकि—
1. कृषि पर निर्भरता अधिक है, जिससे ऋण वसूली कृषि उत्पादन पर काफी निर्भर रहती है।
2. जिले में सहकारी बैंकिंग नेटवर्क विस्तृत है, जो अनुसंधान के लिए पर्याप्त डेटा उपलब्ध कराता है।
3. सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और अवसंरचनात्मक सीमाओं का ऋण वसूली पर स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

4.2 डेटा स्रोत (Data Sources)
इस अध्ययन में दो प्रकार के डेटा का उपयोग किया गया—प्राथमिक (Primary) एवं द्वितीयक (Secondary)।
4.2.1 प्राथमिक डेटा (Primary Data)
प्राथमिक डेटा प्रत्यक्ष फील्ड सर्वेक्षण और साक्षात्कार तकनीक के माध्यम से एकत्रित किया गया।
• PACS समितियों के प्रबंधकों से ऋण वितरण, वसूली की वार्षिक प्रगति, डिफॉल्ट कारण, NPA स्थिति आदि पर विस्तृत जानकारी ली गई।
• ऋणधारकों (Farmers/Members) से ऋण उपयोग, भुगतान क्षमता, आर्थिक कठिनाइयों, फसल उत्पादन और पुनर्भुगतान व्यवहार के संबंध में जानकारी एकत्रित की गई।
• फील्ड अधिकारियों एवं रिकवरी स्टाफ से वसूली प्रक्रिया में आने वाली चुनौतियों, अनुभवों, रणनीतियों और सरकारी योजनाओं के प्रभाव पर डेटा प्राप्त किया गया।
इन साक्षात्कारों में अर्ध-संरचित प्रश्नावली (Semi-structured Schedule) का उपयोग किया गया, जिससे उत्तर लचीले एवं वर्णनात्मक रूप में प्राप्त हो सके।
4.2.2 द्वितीयक डेटा (Secondary Data)
द्वितीयक स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों ने शोध को व्यापक पृष्ठभूमि प्रदान की। इनमें शामिल हैं—
• जिला सहकारी बैंक एवं समितियों के वार्षिक प्रतिवेदन,
• ऑडिट रिपोर्ट,
• NABARD की जिला व राज्य स्तरीय रिपोर्टें,
• RBI के सहकारी बैंकिंग संबंधी प्रकाशन,
• अनुसंधान लेख,
• सरकारी योजनाओं पर आधारित रिपोर्टें,
• समाचार-पत्र रिपोर्ट व वेबसाइट डेटा।
इन स्रोतों से प्राप्त जानकारी ने ऋण वितरण, वसूली प्रतिशत, NPA रुझान, बैंकिंग प्रदर्शन तथा नीतिगत बदलावों का तुलनात्मक अध्ययन करना संभव किया।
4.3 नमूना चयन (Sampling Design)
शोध में उद्देश्यपूर्ण नमूना पद्धति (Purposive Sampling) अपनाई गई, क्योंकि अध्ययन का लक्ष्य विशेष रूप से उन क्षेत्रों पर केंद्रित था जहाँ सहकारी बैंकिंग गतिविधियाँ प्रमुख रूप से संचालित होती हैं।
4.3.1 PACS समितियाँ
सवाई माधोपुर जिले की कुल समितियों में से 10 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) का चयन किया गया। चयन करते समय निम्नलिखित आधार अपनाए गए—
1. विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों (मैदानी, पहाड़ी, वनक्षेत्र) का प्रतिनिधित्व,
2. ऋण वितरण की मात्रा,
3. पिछली वसूली स्थिति,
4. कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर आबादी की संख्या। इससे अध्ययन का दायरा संतुलित और प्रतिनिधिक बना रहा।
4.3.2 जिला केंद्रीय सहकारी बैंक की शाखाएँ
जिला सहकारी बैंक की 3 प्रमुख शाखाओं को शामिल किया गया। इन शाखाओं का चयन ऋण वितरण, वसूली दर, NPA स्तर और बैंकिंग गतिविधियों की व्यापकता के आधार पर किया गया।
• डेटा विश्लेषण तकनीक:
o प्रतिशत विश्लेषण
o वर्षवार तुलना
o ऋण श्रेणीवार तालिका
o विवरणात्मक विश्लेषण

5. ऋण वसूली की वर्तमान स्थिति: श्रेणीवार विश्लेषण
तालिका 9.7 के आधार पर विभिन्न ऋण श्रेणियों की वसूली दर निम्नानुसार पाई गई:
ऋण प्रकार 2019 (%) 2020 (%) 2021 (%) 2022 (%) 2023 (%)
कृषि ऋण 74 76 78 80 83
पशुपालन ऋण 79 80 82 84 86
उपभोक्ता ऋण 71 72 74 76 79
लघु उद्यम ऋण 81 83 85 86 88


विश्लेषण:
तालिका 9.7 के अनुसार सवाई माधोपुर जिले की सहकारी समितियों एवं जिला सहकारी बैंक द्वारा वितरित विभिन्न प्रकार के ऋणों की वसूली दर में वर्ष 2019 से 2023 तक निरंतर सुधार देखने को मिलता है। ऋण वसूली की दक्षता किसी भी वित्तीय संस्था की स्थिरता, ऋण चक्र की निरंतरता और किसानों व ग्रामीण उद्यमियों में भरोसा कायम रखने का प्रमुख आधार होती है। इस संदर्भ में पाँच वर्षीय समयावधि का विश्लेषण यह संकेत देता है कि जिले में ऋण पुनर्भुगतान संबंधी जागरूकता, सरकारी योजनाओं की पहुंच तथा बैंकिंग प्रणाली में पारदर्शिता बढ़ी है।
सबसे पहले लघु उद्यम ऋण की बात करें तो 2019 में 81 प्रतिशत वसूली से बढ़कर 2023 में यह 88 प्रतिशत तक पहुँच गई। यह वृद्धि स्पष्ट करती है कि जिले में ग्रामीण उद्यमिता, स्वरोजगार तथा छोटे व्यवसायों का विस्तार हो रहा है और लाभप्रद व्यवसायों के कारण ऋणधारक समय पर पुनर्भुगतान करने में सक्षम हुए हैं। ऋण वसूली की यह उच्च दर बैंकिंग संस्थाओं के प्रति उद्यमियों के बढ़ते विश्वास को भी दर्शाती है।
पशुपालन ऋण की वसूली दर भी पाँच वर्षों में 79 प्रतिशत से बढ़कर 86 प्रतिशत पहुंची है। चूँकि जिले का ग्रामीण ढांचा पशुधन पर आधारित है, इसलिए डेयरी गतिविधियों, पशुधन विकास कार्यक्रमों और पशु बीमा योजनाओं ने किसानों की आय में स्थिरता प्रदान की, जिसका सकारात्मक प्रभाव वसूली पर दिखाई देता है। यह प्रवृत्ति सहकारी बैंकों के लिए अनुकूल संकेत है कि वे पशुपालन क्षेत्र में ऋण प्रवाह को और सुदृढ़ कर सकते हैं।
कृषि ऋण की वसूली में भी उल्लेखनीय सुधार देखा गया—2019 में 74% से बढ़कर 2023 में 83% तक। वर्षा आधारित कृषि और अनिश्चित जलवायु परिस्थितियों के बावजूद यह सुधार फसल बीमा योजनाओं, ब्याज सब्सिडी, समय-समय पर वित्तीय साक्षरता अभियानों तथा बैंक-समिति समन्वय के बेहतर होने का परिणाम है। बढ़ती वसूली यह भी दर्शाती है कि किसान अब ऋण को निवेश की तरह देखते हुए समय पर भुगतान करने के प्रति अधिक जागरूक हुए हैं।
वहीं उपभोक्ता ऋण, जिन्हें सामान्यतः उच्च जोखिम वाले ऋण की श्रेणी में माना जाता है, उनकी वसूली दर भी 71% से बढ़कर 79% तक पहुंची। उपभोक्ता ऋणों में जोखिम उच्च होने के बावजूद पिछले पाँच वर्षों में लगातार सुधार यह दर्शाता है कि सहकारी बैंकों ने इस क्षेत्र में क्रेडिट मूल्यांकन, पुनर्भुगतान अनुस्मारक, आसान किस्तों एवं डिजिटल भुगतान जैसी प्रक्रियाओं को अधिक प्रभावी बनाया है।
सार रूप में देखें तो सारे ऋण प्रकारों में वर्ष-दर-वर्ष वसूली दर में वृद्धि सहकारी बैंकिंग प्रणाली की मजबूत होती वित्तीय संरचना, ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती वित्तीय साक्षरता, तथा ऋणधारकों की repayment capacity में सुधार का संकेत देती है। यह स्थिति न केवल सहकारी बैंकों के संचालन को अधिक सुदृढ़ बनाती है बल्कि जिले की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करती है।

6. ऋण वसूली को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक (Key Factors Affecting Recovery)
सवाई माधोपुर जिले में सहकारी बैंकों एवं समितियों द्वारा वितरित ऋणों की वसूली एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जो कई आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी तथा प्रशासनिक कारकों से प्रभावित होती है। इन कारकों का प्रभाव ऋणधारकों की पुनर्भुगतान क्षमता, मनोवैज्ञानिक स्थिति, बाजार परिस्थितियों तथा बैंकिंग प्रक्रियाओं की दक्षता पर पड़ता है। नीचे दिए गए प्रमुख कारक ऋण वसूली की वर्तमान स्थिति को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(1) मानसून व कृषि उत्पादन में उतार–चढ़ाव : सवाई माधोपुर जिला मुख्य रूप से वर्षा-आधारित कृषि पर निर्भर है। अनियमित और असमान वर्षा के कारण फसल उत्पादन में गंभीर उतार–चढ़ाव आता है। यदि बारिश कम होती है तो फसलें सूख जाती हैं, और यदि अत्यधिक होती है तो खेतों में जलभराव के कारण उत्पादन घट जाता है। इस स्थिति में किसान को उपज के अपेक्षित मूल्य नहीं मिलते, जिससे उनकी आय कम हो जाती है और वे निर्धारित समय पर ऋण किस्त जमा नहीं कर पाते। इस प्रकार जलवायु की अनिश्चितता ऋण वसूली का सबसे मूलभूत बाहरी कारक है।
(2) किसानों की आय अस्थिरता : ग्रामीण परिवारों की आय मुख्यतः कृषि, डेयरी, मजदूरी या मौसमी कार्यों पर निर्भर करती है। ये सभी आय स्रोत स्थिर नहीं होते। फसल की बिक्री एक या दो बार ही होती है, जबकि खर्च पूरे वर्ष चलते हैं। इस असंतुलन के कारण किसान नियमित और समय पर किस्त जमा करने में कठिनाई महसूस करते हैं। आय की अनियमितता वसूली चक्र को धीमा करती है और बकाया खातों की संख्या बढ़ाती है।
(3) ग्रामीण बाजारों में मूल्य उतार–चढ़ाव : कृषि उत्पादन का मूल्य बाजार परिस्थितियों पर निर्भर करता है, जिसमें अनेक बार अत्यधिक गिरावट देखने को मिलती है। उत्पादन लागत बढ़ने, उर्वरक व बीज जैसी सामग्रियों के महँगे होने तथा फसलों के कम दाम मिलने से किसान का लाभ घट जाता है। लाभ में यह कमी पुनर्भुगतान क्षमता को सीधे प्रभावित करती है। कई बार किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी कम दाम पर फसल बेचने को मजबूर होते हैं, जिससे वसूली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
(4) डिजिटल भुगतान प्रणाली का अभाव : आज के समय में डिजिटल भुगतान ऋण वसूली का महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता अभी भी सीमित है। इंटरनेट नेटवर्क की समस्याओं, बैंकिंग ऐप्स की जानकारी के अभाव, तथा साइबर फ्रॉड के डर के कारण कई उपभोक्ता डिजिटल लेन-देन से दूरी बनाए रखते हैं। इससे भुगतान समय पर नहीं हो पाता और वसूली प्रक्रिया में विलंब होता है।
(5) प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी : सहकारी समितियों में पर्याप्त फील्ड स्टाफ की कमी एक बड़ी चुनौती है। कर्मचारी प्रशिक्षण, तकनीकी दक्षता, तथा ऋण वसूली की रणनीतियों की समझ सीमित होने के कारण नियमित फॉलो-अप, ऑन-ग्राउंड निगरानी और ऋणधारकों से संवाद की प्रक्रिया प्रभावी रूप से नहीं हो पाती। इससे वसूली दर प्रभावित होती है और कई खाते NPA की स्थिति में पहुँच जाते हैं।
(6) ऋण उपयोग की निगरानी सीमित : अनेक मामलों में ऋण राशि निर्धारित उद्देश्य जैसे कृषि, पशुपालन या उद्यमिता गतिविधियों के बजाय घरेलू खर्चों, सामाजिक आयोजनों या अन्य आवश्यकताओं में खर्च कर दी जाती है। जब ऋण राशि उत्पादक गतिविधियों में उपयोग नहीं होती, तो उससे आय नहीं बनती और परिणामस्वरूप पुनर्भुगतान क्षमता घटती है। समितियों व बैंकों द्वारा ऋण उपयोग की सीमित निगरानी वसूली प्रक्रिया के कमजोर होने का एक प्रमुख कारण है।
समग्र रूप से, ये सभी कारक ऋण वसूली के बहुआयामी स्वरूप को उजागर करते हैं। प्राकृतिक परिस्थितियों, आर्थिक अस्थिरता, बाजार संरचना, तकनीकी सीमाओं तथा प्रशासनिक चुनौतियों का संयुक्त प्रभाव सवाई माधोपुर जिले की वसूली दरों को काफी हद तक प्रभावित करता है। इन कारकों की पहचान और समाधान से ही वसूली दक्षता में स्थायी सुधार संभव है।

7. ऋण वसूली में अपनाई जा रही रणनीतियाँ (Strategies Adopted for Recovery)
• नियमित फॉलो-अप और फील्ड विजिट
• मोबाइल रिकवरी टीमों का गठन
• डिजिटल भुगतान (UPI/NEFT) को बढ़ावा
• जागरूकता शिविर
• किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) की मॉनिटरिंग
• प्रोत्साहन-आधारित वसूली मॉडल
• समितियों में MIS रिकॉर्डिंग और डिजिटल रजिस्टर
इन रणनीतियों के परिणामस्वरूप पिछले पाँच वर्षों में कुल वसूली दर में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
8. अध्ययन से प्राप्त प्रमुख निष्कर्ष (Major Findings)
• कृषि ऋण में वसूली दर अभी भी मौसम, आय अस्थिरता व बाजार जोखिमों के कारण चुनौतीपूर्ण है।
• पशुपालन व लघु उद्यम क्षेत्र अपेक्षाकृत स्थिर आय प्रदान करते हैं, इसलिए उनकी वसूली दर सर्वाधिक है।
• डिजिटल भुगतान और MIS प्रणाली के उपयोग से वसूली में सुधार हुआ है।
• समितियों में प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी एक बड़ी बाधा है।
• वसूली दर बढ़ाने में जागरूकता अभियान तथा फील्ड विजिट की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
9. सुझाव (Suggestions)
1. ग्रामीण डिजिटल अवसंरचना को मजबूत किया जाए।
2. स्टाफ को फील्ड-लेवल रिकवरी प्रशिक्षण दिया जाए।
3. फसल बीमा, भूमि रिकॉर्ड और बैंक डेटा का एकीकरण किया जाए।
4. बकायेदारों के लिए लचीली किस्त नीति (Flexible EMI Structure) लागू हो।
5. अत्यधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण कर क्षेत्र–विशिष्ट ऋण मॉडल विकसित किए जाएँ।
6. वसूली में पंचायत स्तर की भागीदारी बढ़ाई जाए।
10. निष्कर्ष (Conclusion)
सवाई माधोपुर जिले के चयनित केंद्रीय सहकारी बैंकों की ऋण वसूली प्रणाली के इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ऋण वसूली केवल एक प्रशासनिक या बैंकिंग औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण वित्तीय तंत्र की रीढ़ के समान एक महत्वपूर्ण और बहुआयामी प्रक्रिया है। अध्ययन से प्राप्त आंकड़े दर्शाते हैं कि गत पाँच वर्षों में वसूली दर में क्रमिक सुधार हुआ है—समय पर वसूली बढ़ी है, डिफॉल्ट राशि घटी है, और कृषि तथा गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में भुगतान अनुशासन में सुधार आया है। यह प्रगति सहकारी संस्थाओं द्वारा अपनाए गए सुधारात्मक प्रयासों, बढ़ती जागरूकता, बेहतर प्रबंधन, सरकारी प्रोत्साहनों तथा तकनीक आधारित पहलों का परिणाम है। फिर भी, क्षेत्र की ग्रामीण एवं कृषि-प्रधान संरचना के कारण वसूली को प्रभावित करने वाले कई कारक अभी भी बाधा के रूप में विद्यमान हैं। अनिश्चित मानसून, वर्षा-निर्भर खेती, लागत–लाभ असंतुलन और फसल मूल्य में उतार–चढ़ाव जैसे बाहरी कारकों के साथ-साथ डिजिटल भुगतान तंत्र की कमजोरियाँ, सीमित मानव संसाधन, ऋण निगरानी प्रणाली की अपर्याप्तता तथा जोखिमग्रस्त क्षेत्रों की विशेष परिस्थितियाँ वसूली की गति को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार, वसूली की चुनौतियाँ आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी और प्रशासनिक—चारों स्तरों पर देखी जाती हैं।
इन जटिल परिस्थितियों को देखते हुए अध्ययन यह इंगित करता है कि सहकारी बैंकों के लिए पारंपरिक वसूली मॉडल अब पर्याप्त नहीं रह गए हैं। आवश्यकता है एक समन्वित, नवाचार-आधारित और क्षेत्र-उन्मुख वसूली रणनीति की, जिसमें निम्नलिखित घटक शामिल हों—डिजिटल बैंकिंग अवसंरचना का सुदृढ़ विस्तार, कर्मचारियों का नियमित प्रशिक्षण, ऋण उपयोग की वैज्ञानिक निगरानी, कृषि बीमा–भूमि रिकॉर्ड–ऋण डेटा का एकीकरण, और ग्राम पंचायत व सामुदायिक संस्थाओं की सक्रिय भागीदारी। विशेष रूप से, जोखिम-आधारित क्षेत्रों के लिए अलग-अलग ऋण मॉडल तैयार करना भविष्य की वसूली को अधिक सुरक्षित और पूर्वानुमान योग्य बनाता है।
संपूर्ण विश्लेषण यह दर्शाता है कि यदि सहकारी संस्थाएँ तकनीक, मानव संसाधन प्रबंधन, सामाजिक सहभागिता और वित्तीय नियोजन को एकीकृत करते हुए कार्य करें, तो ऋण वसूली न केवल बेहतर होगी बल्कि सहकारी बैंक दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता, विश्वास और ग्रामीण विकास के प्रमुख साधन के रूप में और अधिक सशक्त होकर उभरेंगे। सवाई माधोपुर जैसे जिलों में इस प्रकार के सुधार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने, किसानों को वित्तीय रूप से सशक्त करने तथा सहकारी बैंकिंग तंत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। इस प्रकार, अध्ययन का समग्र निष्कर्ष यह है कि वसूली सुधार एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसे तकनीकी विकास, प्रशासनिक दक्षता, सामाजिक भागीदारी और स्थानीय आर्थिक वास्तविकताओं के आधार पर समय-समय पर अद्यतन करते रहना आवश्यक है। यदि अनुशंसित रणनीतियों को प्रभावी रूप से लागू किया जाता है, तो सहकारी बैंक न केवल अपनी वसूली दर में सुधार ला पाएंगे बल्कि ग्रामीण वित्तीय प्रणाली को अधिक भरोसेमंद, लचीला और भविष्यवादी बना सकेंगे।

संदर्भ सूची
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Keywords .
Published In Volume 16, Issue 1, January-June 2025
Published On 2025-04-04
Cite This सहकारी बैंकों में ऋण वसूली की वर्तमान स्थिति, चुनौतियाँ एवं सुधार रणनीतियाँ: सवाई माधोपुर जिले के विशेष संदर्भ में एक विश्लेषण - तेजराम मीना, डॉ. रीमा सिंह - IJAIDR Volume 16, Issue 1, January-June 2025.

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